Thursday, February 9, 2012

AP Police: Hyderabad Police: Hyderabad: हैदराबाद पुलिस के लिए सरदर्द बनते धार्मिक जुलूस, हर वक्त होता है बंदोबस्त ड्यूटी का फरमान..

हैदराबाद में धार्मिक जुलूसों की बढ़ती हुई संख्या शहर की पुलिस के लिए एक बहुत गंभीर समस्या और चुनौती बन गई है. शहर के पुलिस आयुक्त अब्दुल क़य्यूम ख़ान ने कहा है कि गत कुछ वर्षों में हर साल निकाले जाने वाले जुलूसों की संख्या में चार सौ की फ़ीसदी की वृद्धि हुई है जिस से पुलिस के लिए अपना असल काम करना मुश्किल हो गया है. पुलिस आयुक्त ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि पुलिस के 40 प्रतिशत संसाधन धार्मिक जुलूसों और त्योहारों के लिए प्रबंध करने पर ख़र्च हो रहे हैं जिससे न केवल पुलिस अपराधों की छानबीन और उनकी रोकथाम जैसे बुनयादी काम नहीं कर पा रही है बल्कि इस से हैदराबाद की छवि पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. ऐसे जुलूसों की सुरक्षा प्रबंधन में आनेवाले ख़र्च के बारे में पुलिस आयुक्त ने कहा, "इस पर करोड़ों रूपए ख़र्च हो रहे हैं लेकिन सही आंकड़ा बताना मुश्किल है. असल बात यह है कि इन जुलूसों के लिए प्रबंध करने पर ही पुलिस के ज़्यादा साधन ख़र्च हो रहे हैं." उन्होंने कहा कि किसी भी बड़े जुलूस से एक दिन पहले से ही हज़ारों पुलिसकर्मियों को तैनात करना पड़ता है और जुलूस के दूसरे दिन भी उन्हें सतर्क रहना पड़ता है. अगर इतने सारे जुलूस न हों तो पुलिस यही समय अपराधियों को पकड़ने, छानबीन करने और अपराधों की रोकथाम पर लगा सकती है. बढ़ती संख्या "अगर गत वर्ष किसी जुलूस में सौ दो सौ लोगों ने भाग लिया और इस वर्ष उसी में दस हज़ार लोग आ जाते हैं तो हम कुछ नहीं कर सकते" अब्दुल क़य्यूम, पुलिस आयुक्त इससे जुड़ी ख़बरें उत्तर प्रदेश में सभा, जुलूस करना मुश्किल हैदराबाद में शांति से निकला गणेश जुलूस नए हैदराबाद में फैली हिंसा की आग पहले हैदराबाद केवल एक ही जुलूस के लिए मशहूर था और वो था दस मोहराम्मा का ताज़िया जिस में हिन्दू और मुसलमान दोनों ही भाग लिया करते थे. 1980 में गणेश जुलूस का सिलसिला शुरू हुआ जो हैदराबाद के निकट एक गांव बालापुर से निकल कर हैदराबाद के हुसैन सागर झील तक आता था. यह सिलसिला आज भी जारी है और इसका आकार बढ़ते-बढ़ते लगभग पांच लाख लोगों तक पहुंच गया है जिसमें हज़ारों मूर्तियाँ शामिल होती हैं. इसके साथ-साथ अब हिन्दू समुदाय हनुमान जयंती और दुर्गा पूजा के अवसर पर भी बड़े बड़े जुलूस निकलने लगे हैं और मुसलमानों ने भी मिलाद-उन-नबी या पैग़म्बर मोहम्मद के जन्मदिन के अवसर पर भी जुलूस निकलने शुरू कर दिए हैं. दो वर्ष पहले मिलाद उन-नबी और हनुमान जयंती के अवसर पर दोनों समुदायों के बीच दंगे भड़क उठे थे और नगर में कर्फ़्यू लगाना पड़ा था. इससे पहले हैदराबाद का सब से बड़ा दंगा 1984 में गणेश जुलूस के दौरान ही भड़का था. बहुआयामी समस्या
हैदराबाद में गणेश चतुर्थी और अन्य हिंदू धार्मिक त्योहारों में भीड़ का प्रबंधन भी पुलिस के लिए बड़ी समस्या होती है. पुलिस आयुक्त ख़ान ने कहा कि समस्या की गंभीरता को देखते हुए अब पुलिस ने नए जुलूस की अनुमति देने से इनकार कर दिया है, साथ ही मौजूदा जुलूसों को भी रास्ता बदलने की अनमति नहीं दी जा रही है. लेकिन दूसरी ओर अगर एक ही जुलूस में भाग लेने वालों की संख्या बढ़ जाती है तो फिर पुलिस के लिए नई समस्याएं खड़ी हो जाती हैं. पुलिस आयुक्त का कहना था, "अगर गत वर्ष किसी जुलूस में सौ दो सौ लोगों ने भाग लिया और इस वर्ष उसी में दस हज़ार लोग आ जाते हैं तो हम कुछ नहीं कर सकते." अधिकारियों का मानना है कि धार्मिक जुलूसों की बढ़ती हुई संख्या के पीछे शक्ति प्रदर्शन की राजनीति काम कर रही है और ऐसा लगता है कि राजनैतिक दलों में भी एक तरह की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है. अगर गणेश जुलूस निकालने वाली भाग्यनगर गणेश उत्सव समिति की कमान भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दू परिषद के हाथ में है तो मिलाद-उन-नबी के जुलूस को मजलिस-इ-इत्तेहादुल मुस्लिमीन की सरपरस्ती हासिल है. पुलिस आयुक्त ख़ान कहते हैं कि इन जुलूसों पर नियंत्रण में सरकार की भूमिका है लेकिन खुद नागरिकों और ग़ैर सरकारी संगठनों और राजनैतिक दलों को भी सोचना चाहिए कि जो कुछ हो रहा है क्या वो नगर के लिए ठीक है? पुलिस अधिकारियों का मानना है कि जुलूसों की इस बढ़ती संख्या का सबसे बुरा प्रभाव अनेक समुदायों के आपसी संबंधों पर पड़ रहा है क्योंकि शरारती तत्त्व ऐसे अवसरों पर सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने की कोशिश करते हैं

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