Friday, September 9, 2011

Delhi Police: HC Blast: आतंक से पहली लड़ाई पुलिस को ही लड़नी होती है...

तीन महीने में दूसरा आतंकी धमाका और जांच की जिम्मेदारी एक बार फिर एनआईए की टीम को। इस एजेंसी के पास पहले से ही कई धमाकों की जांच की जिम्मेदारी है। जिनमें से कोई भी जांच अभी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है। आरोप तो यह भी है कि वाराणसी और पुणे धमाके की जांच की दिशा इस एजेंसी ने बदल दी। कई धमाकों के सबूतों को नजरंदाज करने का आरोप भी है। ऐसे में एनआईए से इस धमाके की सही जांच की उम्मीद बेमानी है। इस लिहाज से गृह मंत्रालय की मंशा पर भी सवाल उठता है कि आखिर किस भरोसे जांच की जिम्मेदारी इस एजेंसी को दी गई?


आतंकवाद से लड़ने के लिए एक सुपरस्ट्रक्चर की जरूरत है। लेकिन सरकार इसके गठन के बजाय एजेंसियों के नकाब बदल रही है। मौजूदा वक्त में एक साथ कई खुफिया व जांच एजेंसियां काम कर रही हैं। गफलत का यह माहौल तब और धुंधली तस्वीर पेश करती है, जब इनमें एकराय नहीं बन पाती। कुछ एजेंसियां ये दावा करती हैं कि देश में आतंकी हमले का खतरा है, तो कुछ उनके दावों को नकारती हैं। अब ऐसे में देश साल भर हाई अलर्ट पर रहे या न रहे, पर धमाके रुक नहीं रहे हैं।
किसी आतंकी वारदात, विस्फोट या हमले के बाद दो तरह की तस्वीरें बन सकती हैं- पहली, मैक्रो पिक्चर यानी व्यापक स्तर पर देखने-समझने का नजरिया। दूसरा तरीका माइक्रो पिक्चर का भी है। अगर हम माइक्रो पिक्चर को ही लेकर चलें, तो सबसे अहम यह है कि दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर ब्लास्ट का ठीकरा गृह मंत्रालय के सिर फोड़ा जाना चाहिए। दिल्ली की सुरक्षा की जिम्मेदारी इसी मंत्रालय के पास है। ऐसे में, सीसीटीवी की गैरमौजूदगी और पुलिस की कमी जैसे सवाल उठेंगे।
जहां तक मैक्रो पिक्चर की बात है, तो अब सरकार को सचेत रुख अपनाना होगा। गृह मंत्रालय के सचिव स्तरीय महकमें में व्यापक फेरबदल की जरूरत है। इसके अलावा गृह मंत्रलाय को दो भागों में विभक्त करने की रूपरेखा तैयार करनी होगी। यहां पर आंतरिक सुरक्षा तंत्र को अंतरराज्यीय वार्ता जैसी व्यवस्था से अलग रखना होगा। आतंकवाद और नक्सलवाद पर लगाम लगाने के लिए प्रत्यक्ष नियंत्रण आवश्यक है और इसके लिए आंतरिक सुरक्षा तंत्र के कामकाज की पहचान तय करनी होगी। पूर्व के धमाके, उनके निष्कर्षों और भविष्य की आशंकाओं की रिपोर्ट बनाकर एक राष्ट्रीय लक्ष्य तैयार करना होगा।
हाल के वर्षों में हमने पुलिस-प्रशासन तंत्र को काफी कमजोर कर दिया है जबकि आतंकवाद से निपटने का प्राथमिक तंत्र यही है। इस तंत्र को मजबूत, अत्याधुनिक और नवीनतम हथियारों से लैस करने की दिशा में कोई काम नहीं हो रहा है। आतंक के लोकल मॉडय़ूल से निपटने में यह संस्था कारगर हो सकती है, बशर्ते कि इन्हें आतंकवाद से लड़ने लायक बनाया जाए।

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