Monday, June 13, 2011

CG Police : bilaspur: ना खाता ना बही जो थानेदार कहें, वहीं सही

बिलासपुर.पुलिस विभाग का समाज से जुड़ने का दावा खोखला साबित हो रहा है। एक तरफ आला अधिकारी हर मीटिंग में आम व्यक्ति से अच्छा बर्ताव करने और उन्हें पुलिस से जोड़ने पर जोर दे रहे हैं तो दूसरी तरफ थाने का स्टाफ शिकायत लेकर आने वालों को इस तरह परेशान करते हैं कि वह दोबारा न आने की कसम खा लेता है।

हरि पुलिस की मनमानी का आलम यह है कि बलात घर में घुसकर हथियार से वार कर जेवरात छीनने वालों के खिलाफ सिर्फ मारपीट का मामला दर्ज होता है, जबकि यह लूटपाट का प्रकरण है। चोरी की रिपोर्ट से थाने की बदनामी होती है इसलिए रिपोर्ट न दर्ज हो इसकी पूरी कोशिश होती है।

कोई अड़ ही जाए तो उससे आवेदन लेकर पावती सौंप दी जाती है। वहीं हरि टीआई ऐसे आरोपों को निराधार बता रहे हैं। उनका कहना है कि मामलों में किसी तरह का पेंच फंसा होता है, जिसके कारण ऐसा होता है।
डीबी स्टार को हरि पुलिस की ओर से की जा रही अनियमितताओं को लेकर लगातार शिकायतें मिल रही थीं।

इन्हीं में से एक शिकायत थी सरगांव के मालिकराम साहू की। मालिकराम के खेत खपरी रोड में है। खेत में ही उसने घर भी बना रखा है। 3 मई की रात करीब साढ़े 8 बजे वह घर में खाना खा रहा था। किसी ने बाहर से आवाज दी। मालिकराम की पत्नी शबाना ने दरवाजा खोला।

तीन युवक घर में घुस आए और पति-पत्नी पर टूट पड़े। उनके हाथ में हंसिया, पेचकस और चाकू था। उन्होंने मालिकराम पर हंसिया और चाकू से वार किया और पत्नी को बुरी तरह से पीटा। उन्हें लहूलुहान कर युवकों ने घर की तलाशी ली। पत्नी के शरीर से जेवरात उतार लिए और पेटी तोड़कर दो हजार रुपए निकाले।

घर में मालिकराम का मंदबुद्धि बेटा भी था, जिसे आरोपियों ने बख्श दिया। लूटपाट के बाद आरोपी घर को बाहर से बंद कर फरार हो गए। घायल मालिकराम ने मोबाइल से फोन कर पड़ोसी को सूचना देकर बुलाया। एक घंटे के भीतर घायल पति-पत्नी हरि थाने पहुंचे। टीआई इशहाक खलखो ने रोजनामचा में शिकायत दर्ज कराई।

उन्हें मुलाहिजा के लिए बिल्हा भेजा गया, जहां गंभीर चोटों को देखकर डॉक्टर ने जिला अस्पताल रिफर कर दिया। वारदात को हुए एक घंटा भी नहीं बीता था लेकिन आरोपियों की घेराबंदी के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। 3 मई की रात से 6 मई की सुबह तक मालिकराम जिला अस्पताल में भर्ती रहा।

अगले दिन 4 मई को मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई। तीन आरोपियों के खिलाफ धारा 294, 506, 323, 34 के तहत जुर्म दर्ज किया गया। मालिकराम की पत्नी के जेवरात आरोपी निकाल कर ले गए थे, जो कि लूटपाट का मामला है।

इसके बाद भी लूट की बात एफआईआर में नहीं लिखी गई। इस तरह लूटपाट जैसे गंभीर अपराध को छिपाकर मामला सिर्फ मारपीट तक सीमित कर दिया गया है। उसने जब एसपी से शिकायत करने की बात कही तो पुलिस वालों ने उसे रोक दिया और मामला जल्द निपटाने का आश्वासन दिया।

प्रार्थी अस्पताल में, फिर भी हो गई एफआईआर

हरि पुलिस ने घायल मालिकराम के अस्पताल से छुट्टी होने का भी इंतजार नहीं किया। वारदात के अगले दिन सुबह 4 मई को दोपहर 12 बजे के आसपास थाने का मुंशी जिला अस्पताल पहुंचा। मालिकराम से बातचीत की और कागजों में दस्तखत करा लिए गए।

वास्तव में यह एफआईआर की कॉपी थी। मालिकराम के दस्तखत के बाद पुलिस ने अपनी ओर से एफआईआर में वारदात की घटना लिख ली। मामले में मारपीट का मामला दर्ज किया गया, जबकि इसमें लूट की घटना भी शामिल थी। प्रक्रिया के तहत अस्पताल में भर्ती होने के कारण मालिकराम का सिर्फ बयान लिया जाना था।

इसके आधार पर एफआईआर होती। वहीं थाने में मौजूद एफआईआर में मालिकराम के दस्तखत हैं। इसका मतलब कि वह थाने पहुंचा था। हकीकत यह है कि वह अगले दिन अस्पताल में था। ऐसी सूरत में किसी भी स्थिति में वह एफआईआर में दस्तखत कराने थाने नहीं पहुंच सकता था। पुलिस की सारी कारगुजारी सिर्फ इसलिए है ताकि किसी भी सूरत में लूटपाट की बात सामने न आ सके।

आजीवन कारावास का प्रावधान

लूट व डकैती की वारदात गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। किसी भी थाना क्षेत्र में इस तरह की वारदात वहां की पुलिस व्यवस्था में भारी चूक को साबित करती है। इस प्रकरण में भी पत्नी के जेवरात जबरदस्ती उतरवा कर आरोपियों द्वारा ले जाना पाया गया है जो कि लूट का मामला है। ऐसे प्रकरण में अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।

टीआई के आदेश पर होता है जुर्म दर्ज

हरि थाने में कोई बड़े से बड़ा या छोटे से छोटा प्रकरण भी लेकर जाए तो फौरन एफआईआर नहीं होती है। थाने के स्टाफ को टीआई की ओर से सख्त निर्देश हैं कि उनके आदेश के बिना किसी मामले में एफआईआर न लिए जाए। पहले प्रकरण टीआई तक पहुंचता है इसके बाद उनके निर्देश पर ही प्रकरण दर्ज होता है। यही कारण है कि बहुत से मामलों में पावती थमाई जाती है या मामले को ही पेंडिंग कर दिया जाता है।

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