Sunday, March 20, 2011

पुलिस एक्ट खत्म करेगा सरकारी दखल

भोपाल. विधानसभा के बजट सत्र में नया पुलिस एक्ट लाने की गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता की घोषणा ने पुलिस की उम्मीदों को फिर जगा दिया है। पुलिस मुख्यालय के अफसर,विशेषज्ञ इससे उत्साहित तो हैं,लेकिन संशय में भी हैं कि सरकार, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को किस हद तक मानेगी। कोर्ट के निर्देशों का सही तरीके से पालन हुआ तो महकमे पर सरकार की पकड़ ढीली हो जाएगी।

जानकार कहते हैं कि सरकार के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप पुलिस एक्ट को लागू करना आसान नहीं होगा। यदि ऐसा हुआ तो पुलिस अफसर प्रत्यक्ष रूप से सरकार के नियंत्रण से मुक्त हो जाएंगे।
अफसरों के तबादले और पदोन्नति में सरकार की दखलंदाजी नहीं होगी। यह काम पुलिस स्थापना बोर्ड करेगा।

9 साल पहले का निर्णय : सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रकरण की सुनवाई करते हुए 22 सितंबर 2002 को पुलिस सुधारों के लिए सोराबजी कमेटी बनाई थी। कमेटी ने पुलिस सुधार पर रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को पुलिस एक्ट बनाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे।

राज्य सुरक्षा आयोग का गठन

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनी सोराबजी कमेटी की अनुशंसा है कि आयोग के अध्यक्ष मुख्यमंत्री या गृहमंत्री होंगे। सचिव डीजीपी होंगे। विधानसभा में विपक्ष के नेता,गृह सचिव,हाईकोर्ट द्वारा नामांकित सेवानिवृत्त जज व गैर सरकारी संगठनों के पांच गैर राजनीतिक सदस्य भी इस आयोग में होंगे। यह आयोग पुलिस के कामकाज की समीक्षा करेगा।

कानून व्यवस्था की पुलिस अलग : विवेचना और कानून व्यवस्था के लिए अलग-अलग पुलिस होगी। महानगरों में पुलिस ने यह प्रयोग शुरू भी कर दिया है। जिला स्तर पर पुलिस शिकायत प्राधिकरण भी बनाए गए हैं।,

इसके अध्यक्ष जिले के प्रभारी मंत्री हैं। हालांकि इनके परिणामों की समीक्षा नहीं हुई है।

बिना ठोस कारण के दो साल से पहले नहीं हटेंगे अफसर

राज्य सरकार तीन आईपीएस अधिकारियों के पैनल में सेवा रिकार्ड,वरिष्ठता के आधार पर डीजीपी का चयन करेगी। डीजीपी का कार्यकाल दो साल से कम नहीं होगा। आईजी, डीआईजी, एसपी और टीआई भी दो साल से पहले नहीं हटाए जाएंगे। अफसरों पर कोई आपराधिक मामला या ड्यूटी में गंभीर लापरवाही बरतने पर ही समय से पहले हटाया जा सकेगा। पुलिस अधिकारियों के तबादले,पोस्टिंग और पदोन्नति का काम स्थापना बोर्ड देखेगा।

कोर्ट के निर्देशों का रखें ध्यान

पुलिस एक्ट लागू करने की गृहमंत्री की घोषणा स्वागत योग्य है। अहम बात यह है कि पुलिस सुधारों के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को किस हद तक शामिल किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की मूल आत्मा एक्ट में बरकरार रहे, तभी पुलिस के कामकाज में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।

सुभाषचंद्र त्रिपाठी,सेवानिवृत्त डीजीपी

इससे पहले वर्ष 2009 में भी गृहमंत्री ने पुलिस एक्ट लागू करने की घोषणा की थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। सरकार पुलिस एक्ट लागू करने के प्रति ईमानदार नहीं है। पता नहीं इस घोषणा का क्या हश्र होगा।

अजय दुबे,सदस्य,ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल

कुछ राज्यों ने पुलिस एक्ट लागू कर लिया है। यहां भी मसौदा तैयार है,गृहमंत्री ने घोषणा की है कि जल्द ही इसे विधानसभा में रखा जाएगा।

एके दास,प्रमुख सचिव,गृह

साभार:दैभा.

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